Wednesday, December 13, 2017

संतोषी माता व्रत की कथा

                

     
एक बुढ़िया थी, उसके सात बेटे थे। 6 कमाने वाले थे जबकि एक निक्कमा था। बुढ़िया छहों बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वह सातवें को दे देती। एक दिन वह पत्नी से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली- क्यों नहीं, सबका झूठा जो तुमको खिलाती है। वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता। बहू हंस कर बोली- देख लोगे तब तो मानोगे।

कुछ दिन बाद त्यौहार आया। घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया। वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, मां ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जमाया। वह देखता रहा। छहों भोजन करके उठे तब मां ने उनकी झूठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर बुढ़िया मां ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा। वह कहने लगा- मां मुझे भोजन नहीं करना, मैं अब परदेश जा रहा हूं। मां ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा। वह बोला- हां आज ही जा रहा हूं। यह कह कर वह घर से निकल गया।

सातवें बेटे का परदेश जाना 


चलते समय पत्नी की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे (उपले) थाप रही थी। वहां जाकर बोला- हम जावे परदेश आवेंगे कुछ काल, तुम रहियो संतोष से धर्म आपनो पाल। वह बोली- जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय, राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय। दो निशानी आपन देख धरूं में धीर, सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर। वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे। वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुंचा।

परदेश में नौकरी 


वहां एक साहूकार की दुकान थी। वहां जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो। साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा। लड़के ने पूछा- तनखा क्या दोगे। साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह 7 बजे से 10 बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया। सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया।

पति की अनुपस्थिति में सास का अत्याचार 


इधर उसकी पत्नी को सास ससुर दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते में बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी।

संतोषी माता का व्रत 


 वह वहां खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है। यदि तुम इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगे तो मैं तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनो, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है और जो कुछ मन में कामना हो, सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है। तब उसने उससे व्रत की विधि पूछी।

संतोषी माता व्रत विधि 


वह बोली- सवा आने का गुड़ चना लेना, इच्छा हो तो सवा पांच आने का लेना या सवा रुपए का भी सहूलियत के अनुसार लाना। बिना परेशानी और श्रद्धा व प्रेम से जितना भी बन पड़े सवाया लेना। प्रत्येक शुक्रवार को निराहार रह कर कथा सुनना, इसके बीच क्रम टूटे नहीं, लगातार नियम पालन करना, सुनने वाला कोई न मिले तो धी का दीपक जला उसके आगे या जल के पात्र को सामने रख कर कथा कहना। जब कार्य सिद्ध न हो नियम का पालन करना और कार्य सिद्ध हो जाने पर व्रत का उद्यापन करना। तीन मास में माता फल पूरा करती है। यदि किसी के ग्रह खोटे भी हों, तो भी माता वर्ष भर में कार्य सिद्ध करती है, फल सिद्ध होने पर उद्यापन करना चाहिए बीच में नहीं। उद्यापन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा तथा इसी परिमाण से खीर तथा चने का साग करना। आठ लड़कों को भोजन कराना, जहां तक मिलें देवर, जेठ, भाई-बंधु के हों, न मिले तो रिश्तेदारों और पास-पड़ोसियों को बुलाना। उन्हें भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दे माता का नियम पूरा करना। उस दिन घर में खटाई न खाना। यह सुन बुढ़िया के लड़के की बहू चल दी।

व्रत का प्रण करना और मां संतोषी का दर्शन देना 


रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसों से गुड़-चना ले माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी- यह मंदिर किसका है। सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है, यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर चरणों में लोटने लगी। दीन हो विनती करने लगी- मां मैं निपट अज्ञानी हूं, व्रत के कुछ भी नियम नहीं जानती, मैं दु:खी हूं। हे माता जगत जननी मेरा दु:ख दूर कर मैं तेरी शरण में हूं। माता को दया आई - एक शुक्रवार बीता कि दूसरे को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ पैसा आ पहुंचा। यह देख जेठ-जिठानी मुंह सिकोडऩे लगे। लड़के ताने देने लगे- काकी के पास पत्र आने लगे, रुपया आने लगा, अब तो काकी की खातिर बढ़ेगी। बेचारी सरलता से कहती- भैया कागज आवे रुपया आवे हम सब के लिए अच्छा है। ऐसा कह कर आंखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर में आ मातेश्वरी के चरणों में गिरकर रोने लगी। मां मैंने तुमसे पैसा कब मांगा है। मुझे पैसे से क्या काम है। मुझे तो अपने सुहाग से काम है। मैं तो अपने स्वामी के दर्शन मांगती हूं। तब माता ने प्रसन्न होकर कहा-जा बेटी, तेरा स्वामी आयेगा। यह सुनकर खुशी से बावली होकर घर में जा काम करने लगी। अब संतोषी मां विचार करने लगी, इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया कि तेरा पति आयेगा लेकिन कैसे? वह तो इसे स्वप्न में भी याद नहीं करता। उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा। इस तरह माता जी उस बुढ़िया के बेटे के पास जा स्वप्न में प्रकट हो कहने लगी- साहूकार के बेटे, सो रहा है या जागता है। वह कहने लगा- माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूं कहो क्या आज्ञा है? मां कहने लगी- तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं। वह बोला- मेरे पास सब कुछ है मां-बाप है बहू है क्या कमी है। मां बोली- भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे मां-बाप उसे परेशानी दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले। वह बोला- हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं? मां कहने लगी- मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ।

देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, सांझ होते-होते धन का भारी ठेर लग जाएगा। अब बूढ़े की बात मानकर वह नहा धोकर संतोषी माता को दण्डवत धी का दीपक जला दुकान पर जा बैठा। थोड़ी देर में देने वाले रुपया लाने लगे, लेने वाले हिसाब लेने लगे। कोठे में भरे सामान के खरीददार नकद दाम दे सौदा करने लगे। शाम तक धन का भारी ठेर लग गया। मन में माता का नाम ले चमत्कार देख प्रसन्न हो घर ले जाने के वास्ते गहना, कपड़ा सामान खरीदने लगा। यहां काम से निपट तुरंत घर को रवाना हुआ।

उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है, लौटते वक्त माताजी के मंदिर में विश्राम करती। वह तो उसके प्रतिदिन रुकने का जो स्थान ठहरा, धूल उड़ती देख वह माता से पूछती है- हे माता, यह धूल कैसे उड़ रही है? माता कहती है- हे पुत्री तेरा पति आ रहा है। अब तू ऐसा कर लकड़ियों के तीन बोझ बना ले, एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर पर व तीसरा अपने सिर पर। तेरे पति को लकड़ियों का गट्ठर देख मोह पैदा होगा, वह यहां रुकेगा, नाश्ता-पानी खाकर मां से मिलने जाएगा, तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर जाना और चौक में गट्ठर डालकर जोर से आवाज लगाना- लो सासूजी, लकडिय़ों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो, नारियल के खेपड़े में पानी दो, आज मेहमान कौन आया है? माताजी से बहुत अच्छा कहकर वह प्रसन्न मन से लकड़ियों के तीन गट्ठर बनाई। एक नदी के किनारे पर और एक माताजी के मंदिर पर रखा।

इतने में मुसाफिर आ पहुंचा। सूखी लकड़ी देख उसकी इच्छा उत्पन्न हुई कि हम यही पर विश्राम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। इसी तरह रुक कर भोजन बना, विश्राम करके गांव को गया। सबसे प्रेम से मिला। उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह उतावली सी आती है। लकड़ियों का भारी बोझ आंगन में डालकर जोर से तीन आवाज देती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है। यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने हेतु कहती है- बहु ऐसा क्यों कहती है? तेरा मालिक ही तो आया है। आ बैठ, मीठा भात खा, भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है। अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है। मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है मां मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की ताली दो, उसमें रहूंगा। मां बोली- ठीक है, जैसी तेरी मरजी। तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।

शुक्रवार व्रत के उद्यापन में हुई भूल, किया खटाई का इस्तेमाल 

उसने पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जिठानी के लड़कों को भोजन के लिए कहने गई। उन्होंने मंजूर किया परन्तु पीछे से जिठानी ने अपने बच्चों को सिखाया, देखो, भोजन के समय खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन पूरा न हो। लड़के जीमने आए खीर खाना पेट भर खाया, परंतु बाद में खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, खीर खाना हमको नहीं भाता, देखकर अरुचि होती है। वह कहने लगी- भाई खटाई किसी को नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है। लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए। लड़के उसी समय हठ करके इमली खटाई ले खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी मन-माने वचन कहने लगे। लूट-लूट कर धन इकट्ठा कर लाया है, अब सब मालूम पड़ जाएगा जब जेल की मार खाएगा। बहु से यह सहन नहीं हुए।

मां संतोषी से मांगी माफी 


रोती हुई माताजी के मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, तुमने क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी। माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। वह कहने लगी- माता मैंने कुछ अपराध किया है, मैंने तो भूल से लड़कों को पैसे दे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना। वह कहती है- अब भूल नहीं होगी, अब बतलाओ वे कैसे आवेंगे? मां बोली- जा पुत्री तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति आता मिला। वह पूछी- कहां गए थे? वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह प्रसन्न हो बोली- भला हुआ, अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया

फिर किया व्रत का उद्यापन 


वह बोली- मुझे फिर माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और सब लड़कों को सिखाने लगी। तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना। लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, यथा शक्ति दक्षिणा की जगह एक-एक फल उन्हें दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।

संतोषी माता का फल 


माता की कृपा होते ही नवमें मास में उसके चन्द्रमा के समान सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी। देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल डाकिन चली आ रही है, लड़कों इसे भगाओ, नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, प्रसन्नता से पगली बन चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है। इतने में सास का क्रोध फट पड़ा। वह बोली- क्या उतावली हुई है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे। वह बोली- मां मैं जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम मूर्ख हैं, अज्ञानी हैं, तुम्हारे व्रत की विधि हम नहीं जानते, व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, जग माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो।
             

                     बोलो संतोषी माता की जय।

Wednesday, November 22, 2017

संतोषी माता व्रत का महात्म्य व विधि

          संतोषी माता व्रत का महात्म्य व विधि

संतोषी माता के पिता गणेश, माता श्रद्धि-सिध्दि, धन - धान्य, सोना , चाँदी, मोती, मूँगा, रत्नों, से भरा परिवार , पिता गणपति की दुलार भरा कमाई, दरिद्रता दूर, कलह का नाश, सुख-शांति का प्रकास, बालको की फुलवारी, धन्धे में मुनाफे भरा कमाई, मन की कामना पूर्ण, शोक, विपत्ति, चिंता सब दूर। संतोषी माता का लो नाम, जिससे बन जायें सारे काम, बोलो संतोषी माता की जय ।
इस व्रत को करने वाला कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे तथा सुनते वाले ' संतोषी माता की जय-जयकार ' मुख से बोलते जायें । तथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़, चना गौ माता को खिलावें, कलश में रखा हुआ गुड़, चना सबको प्रसाद के रूप में बांट दें । कथा से पहले कलश को जल से भरें । उसके ऊपर गुड़-चने से भरा कटोरा रखें । कथा समाप्त कर आरती करने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़के और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें । सवा रूपये का गुड़, चना लेकर माता का व्रत करें । गुड़ घर में हो तो लेवें, ।विचार न करें, क्योंकि माता भावना की भूखी है -कम ज्यादा का कोई विचार नहीं । इसलिए जितना बन पड़े श्रध्दा से समर्पित करें । श्रध्दा और प्रेम से प्रसन्न मन हो कर ही सदैव व्रत करना चाहिए । व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा , मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का साग ,नैवेद्य रखें, घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय-जयकार बोलें तथा नारियल फोड़े।
इस दिन घर में कोई खटाई न खाएे और न स्वयं खाएे, न किसी दुसरे को खाने दें । कुटुम्बी ना मिलें तो ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के बालक बुलावें,उन्हें खटाई की कोई वस्तु ना दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे न दें,कोई वस्तु दक्षिणा में दें । व्रत करने वाला कथा सुन, प्रसाद ले एक समय भोजन करें, इससे माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होगी तथा मनोकामना पूरी होगी ।
संतोषी माता के पिता गणेश, माता श्रद्धि-सिध्दि, धन - धान्य, सोना , चाँदी, मोती, मूँगा, रत्नों, से भरा परिवार , पिता गणपति की दुलार भरा कमाई, दरिद्रता दूर, कलह का नाश, सुख-शांति का प्रकास, बालको की फुलवारी, धन्धे में मुनाफे भरा कमाई, मन की कामना पूर्ण, शोक, विपत्ति, चिंता सब दूर। संतोषी माता का लो नाम, जिससे बन जायें सारे काम, बोलो संतोषी माता की जय ।
इस व्रत को करने वाला कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे तथा सुनते वाले ' संतोषी माता की जय-जयकार ' मुख से बोलते जायें । तथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़, चना गौ माता को खिलावें, कलश में रखा हुआ गुड़, चना सबको प्रसाद के रूप में बांट दें । कथा से पहले कलश को जल से भरें । उसके ऊपर गुड़-चने से भरा कटोरा रखें । कथा समाप्त कर आरती करने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़के और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें । सवा रूपये का गुड़, चना लेकर माता का व्रत करें । गुड़ घर में हो तो लेवें, ।विचार न करें, क्योंकि माता भावना की भूखी है -कम ज्यादा का कोई विचार नहीं । इसलिए जितना बन पड़े श्रध्दा से समर्पित करें । श्रध्दा और प्रेम से प्रसन्न मन हो कर ही सदैव व्रत करना चाहिए । व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा , मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का साग ,नैवेद्य रखें, घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय-जयकार बोलें तथा नारियल फोड़े।
इस दिन घर में कोई खटाई न खाएे और न स्वयं खाएे, न किसी दुसरे को खाने दें । कुटुम्बी ना मिलें तो ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के बालक बुलावें,उन्हें खटाई की कोई वस्तु ना दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे न दें,कोई वस्तु दक्षिणा में दें । व्रत करने वाला कथा सुन, प्रसाद ले एक समय भोजन करें, इससे माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होगी तथा मनोकामना पूरी होगी ।


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                        जय माता दी

Sunday, July 30, 2017

श्री दुर्गा माता जी की आरती


श्री दुर्गा माता की आरती

हिन्दू धर्म में आदि शक्ति दुर्गा का स्थान सर्वोपरि माना गया है। मान्यता है कि दुर्गा जी इस भौतिक संसार में सभी सुखों की दात्री हैं। उनकी भक्ति कर भक्त अपनी सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर सकते हैं। साथ ही साधकों को देवी दुर्गा ही साधनाएं प्रदान करती हैं। मां दुर्गा की साधना में लोग मां की आरती का भी पाठ करते हैं।

देवी वन्दना

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ||

दुर्गा जी की आरती

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत
मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ।| जय अम्बे गौरी ॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को |मैया टीको मृगमद को
उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको|| जय अम्बे गौरी ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे| मैया रक्ताम्बर साजे
रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे|| जय अम्बे गौरी ॥

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी| मैया खड्ग कृपाण धारी
सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती| मैया नासाग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति|| जय अम्बे गौरी ॥

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती| मैया महिषासुर घाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती|| जय अम्बे गौरी ॥

चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे| मैया शोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे|| जय अम्बे गौरी ॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी| मैया तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी|| जय अम्बे गौरी ॥

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों| मैया नृत्य करत भैरों
बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू|| जय अम्बे गौरी ॥

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता| मैया तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता|| जय अम्बे गौरी ॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी| मैया वर मुद्रा धारी
मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी|| जय अम्बे गौरी ॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती| मैया अगर कपूर बाती
माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती|| बोलो जय अम्बे गौरी ॥

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे| मैया जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे|| जय अम्बे गौरी ॥




Saturday, July 22, 2017

श्री हरी भगवान विष्णु जी की आरती

ॐ जय जगदीश हरे,स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का.स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का
ॐ जय जगदीश हरे

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी,स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी
ॐ जय जगदीश हरे

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी,स्वामी तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी
ॐ जय जगदीश हरे

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,स्वामी तुम पालनकर्ता
मैं मूरख खल कामी, मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता
ॐ जय जगदीश हरे

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,स्वामी सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय,तुमको मैं कुमति
ॐ जय जगदीश हरे

दीनबंधु दुखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे,स्वामी ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे
ॐ जय जगदीश हरे

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,स्वमी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,संतन की सेवा
ॐ जय जगदीश हरे

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे
ॐ जय जगदीश हरे

Monday, July 17, 2017

लक्ष्मी जी आरती

                            लक्ष्मी जी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥ टेक ॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही हो जग-माता ।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ॐ जय… ॥

दुर्गा रुप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता ।
जो को‌ई तुमको ध्याता, ऋद्घि-सिद्घि धन पाता ॥ ॐ जय… ॥

तुम ही पाताल बसंती, तुम ही शुभदाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ ॐ जय… ॥

जिस घर में तुम रहती, सब सद्‍गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥ ॐ जय… ॥

तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्त्र न को‌ई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ ॐ जय… ॥

शुभ-गुण मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्‍न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥ ॐ जय… ॥

Sunday, July 16, 2017

सरस्वती माता जी की आरती

सरस्वती माता जी की आरती

कज्जल पुरित लोचन भारे स्तन युग शोभित मुक्त हारे,
वीणा पुस्तक रंजित हस्ते भगवती भारती देवी नमस्ते ॥

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता,
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता ॥
जय सरस्वती माता ॥

चंद्रवदनि पदमासिनी घुति मंगलकारी,
सोहें शुभ हंस सवारी अतुल तेजधारी ॥
जय सरस्वती माता ॥

बायेँ कर में वीणा दायें कर में माला,
शीश मुकुट मणी सोहें गल मोतियन माला ॥
जय सरस्वती माता ॥

देवी शरण जो आयें उनका उद्धार किया,
पैठी मंथरा दासी रावण संहार किया ॥
जय सरस्वती माता ॥

विद्या ज्ञान प्रदायिनी ज्ञान प्रकाश भरो,
मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥
जय सरस्वती माता ॥

धुप दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो,
ज्ञानचक्षु दे माता भव से उद्धार करो ॥
जय सरस्वती माता ॥

माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें,
हितकारी सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥
जय सरस्वती माता ॥

जय सरस्वती माता जय जय हे सरस्वती माता,
सदगुण वैभव शालिनी त्रिभुवन विख्याता॥
जय सरस्वती माता ॥

Tuesday, July 11, 2017

भगवान शिव का अर्धनारिश्वर अवतार की कथा

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“शीश गंग अर्धंग पार्वती….. नंदी भृंगी नृत्य करत है” शिव स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर ही सुना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार  एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे किन्तु इनकी भक्ति कुछ ज्यादा ही कट्टर किस्म की थी। कट्टर से तात्पर्य है कि ये भगवान शिव की तो आराधना करते थे किन्तु बाकि भक्तो की भांति माता पार्वती को नहीं पूजते थे।


लेकिन उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी लेकिन वो माता पार्वती जी को हमेशा ही शिव से अलग समझते थे या फिर ऐसा भी कह सकते है कि वो माता को कुछ समझते ही नही थे। वैसे ये कोई उनका घमंड नही अपितु शिव और केवल शिव में आसक्ति थी जिसमे उन्हें शिव के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था। एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे।

ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वती ने नाराजगी प्रकट किया और कहा कि हम दो जिस्म एक जान है तुम ऐसा नही कर सकते। पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वती जी को अनसुना कर दिया और भगवान शिव की परिक्रमा लगाने बढे। किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई। इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ। अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे।

ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा।

हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की देन होते है l श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे l तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।

हालाँकि तब पार्वती ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया l ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके तो भक्त भृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का उदय।

महादेव के अर्द्धनारीश्वर अवतार से जुडी दूसरी कथा

अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो कथा पुराणों में दी गयी है उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उसमें विकास की गति नहीं है। जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है उनकी संख्या में वृद्घि नहीं हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।

ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे शिव जी प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि मैथुन सृष्टि कैसी होगी, कृपया यह भी बताएं। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया।

इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिवा यानी शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इसके बाद अर्द्घनारीश्वर स्वरूप एक होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गया। इसके बाद मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।

Monday, June 12, 2017

भगवान शिव के 19 अवतार


महाशिवरात्री का पर्व हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को  मनाया जाता है। कहते है इसी दिन भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए थे। शिव महापुराण में भगवान शिव के अनेक अवतारों का वर्णन मिलता है, लेकिन बहुत ही कम लोग इन अवतारों के बारे में जानते हैं। धर्म ग्रंथों  के अनुसार भगवान शिव के 19 अवतार हुए थे। महाशिवरात्रि के इस पावन अवसर पर हम आपको बता रहे हैं भगवान शिव के 19 अवतारों के बारे में-


1- वीरभद्र अवतार 

भगवान शिव का यह अवतार तब हुआ था, जब दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में माता सती ने अपनी देह का त्याग किया था। जब भगवान शिव को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। शिव के इस अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काटकर उसे मृत्युदंड दिया।

2- पिप्पलाद अवतार 
मानव जीवन में भगवान शिव के पिप्पलाद अवतार का बड़ा महत्व है। शनि पीड़ा का निवारण पिप्पलाद की कृपा से ही संभव हो सका। कथा है कि पिप्पलाद ने देवताओं से पूछा- क्या कारण है कि मेरे पिता दधीचि जन्म से पूर्व ही मुझे छोड़कर चले गए? देवताओं ने बताया शनिग्रह की दृष्टि के कारण ही ऐसा कुयोग बना। पिप्पलाद यह सुनकर बड़े क्रोधित हुए। उन्होंने शनि को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दे दिया।  श्राप के प्रभाव से शनि उसी समय आकाश से गिरने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर पिप्पलाद ने शनि को इस बात पर क्षमा किया कि शनि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक किसी को कष्ट नहीं देंगे। तभी से पिप्पलाद का स्मरण करने मात्र से शनि की पीड़ा दूर हो जाती है। शिव महापुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्मा ने ही शिव के इस अवतार का नामकरण किया था।

3- नंदी अवतार 
भगवान शंकर सभी जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। भगवान शंकर का नंदीश्वर अवतार भी इसी बात का अनुसरण करते हुए सभी जीवों से प्रेम का संदेश देता है। नंदी (बैल) कर्म का प्रतीक है, जिसका अर्थ है कर्म ही जीवन का मूल मंत्र है। इस अवतार की कथा इस प्रकार है- शिलाद मुनि ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने शिलाद से संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद ने अयोनिज और मृत्युहीन संतान की कामना से भगवान शिव की तपस्या की। तब भगवान शंकर ने स्वयं शिलाद के यहां पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। कुछ समय बाद भूमि जोतते समय शिलाद को भूमि से उत्पन्न एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। भगवान शंकर ने नंदी को अपना गणाध्यक्ष बनाया। इस तरह नंदी नंदीश्वर हो गए। मरुतों की पुत्री सुयशा के साथ नंदी का विवाह हुआ।

4- भैरव अवतार 
शिव महापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज-पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवे सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवा सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है।

5- अश्वत्थामा 
महाभारत के अनुसार पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा काल, क्रोध, यम व भगवान शंकर के अंशावतार थे। आचार्य द्रोण ने भगवान शंकर को पुत्र रूप में पाने की लिए घोर तपस्या की थी और भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि वे उनके पुत्र के रूप मेें अवतीर्ण होंगे। समय आने पर सवन्तिक रुद्र ने अपने अंश से द्रोण के बलशाली पुत्र अश्वत्थामा के रूप में अवतार लिया। ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा अमर हैं तथा वह आज भी धरती पर ही निवास करते हैं। शिवमहापुराण (शतरुद्रसंहिता-37) के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं और वे गंगा के किनारे निवास करते हैं किंतु उनका निवास कहां हैं, यह नहीं बताया गया है।

6- शरभावतार 
भगवान शंकर का छटा अवतार है शरभावतार। शरभावतार में भगवान शंकर का स्वरूप आधा मृग (हिरण) तथा शेष शरभ पक्षी (पुराणों में वर्णित आठ पैरों वाला जंतु जो शेर से भी शक्तिशाली था) का था। इस अवतार में भगवान शंकर ने नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि को शांत किया था। लिंगपुराण में शिव के शरभावतार की कथा है, उसके अनुसार-  हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंहावतार लिया था। हिरण्यकशिपु के वध के पश्चात भी जब भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवता शिवजी के पास पहुंचे। तब भगवान शिव ने शरभावतार लिया और वे इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनकी स्तुति की, लेकिन नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई। उन्होंने शरभावतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की।

7- गृहपति अवतार 
भगवान शंकर का सातवां अवतार है गृहपति। इसकी कथा इस प्रकार है- नर्मदा के तट पर धर्मपुर नाम का एक नगर था। वहां विश्वानर नाम के एक मुनि तथा उनकी पत्नी शुचिष्मती रहती थीं। शुचिष्मती ने बहुत काल तक नि:संतान रहने पर एक दिन अपने पति से शिव के समान पुत्र प्राप्ति की इच्छा की। पत्नी की अभिलाषा पूरी करने के लिए मुनि विश्वनार काशी आ गए। यहां उन्होंने घोर तप द्वारा भगवान शिव के वीरेश लिंग की आराधना की। एक दिन मुनि को वीरेश लिंग के मध्य एक बालक दिखाई दिया। मुनि ने बालरूपधारी शिव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने शुचिष्मति के गर्भ से अवतार लेने का वरदान दिया। कालांतर में शुचिष्मति गर्भवती हुई और भगवान शंकर शुचिष्मती के गर्भ से पुत्ररूप में प्रकट हुए। कहते हैं, पितामह ब्रह्मïा ने ही उस बालक का नाम गृहपति रखा था।

8- ऋषि दुर्वासा 
भगवान शंकर के विभिन्न अवतारों में ऋषि दुर्वासा का अवतार भी प्रमुख है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सती अनुसूइया के पति महर्षि अत्रि ने ब्रह्मा के निर्देशानुसार पत्नी सहित ऋक्षकुल पर्वत पर पुत्रकामना से घोर तप किया। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों उनके आश्रम पर आए। उन्होंने कहा- हमारे अंश से तुम्हारे तीन पुत्र होंगे, जो त्रिलोकी में विख्यात तथा माता-पिता का यश बढ़ाने वाले होंगे। समय आने पर ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा उत्पन्न हुए। विष्णु के अंश से श्रेष्ठ संन्यास पद्धति को प्रचलित करने वाले दत्तात्रेय उत्पन्न हुए और रुद्र के अंश से मुनिवर दुर्वासा ने जन्म लिया।

9- हनुमान
भगवान शिव का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ माना गया है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। शिवमहापुराण के अनुसार देवताओं और दानवों को अमृत बांटते हुए विष्णुजी के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर लिया। समय आने पर सप्तऋषियों ने भगवान शिव के वीर्य को वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के कान के माध्यम से गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए।

10- वृषभ अवतार 
भगवान शंकर ने विशेष परिस्थितियों में वृषभ अवतार लिया था। इस अवतार में भगवान शंकर ने विष्णु पुत्रों का संहार किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार जब भगवान विष्णु दैत्यों को मारने पाताल लोक गए तो उन्हें वहां बहुत सी चंद्रमुखी स्त्रियां दिखाई पड़ी। विष्णु ने उनके साथ रमण करके बहुत से पुत्र उत्पन्न किए। विष्णु के इन पुत्रों ने पाताल से पृथ्वी तक बड़ा उपद्रव किया। उनसे घबराकर ब्रह्माजी ऋषिमुनियों को लेकर शिवजी के पास गए और रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। तब भगवान शंकर ने वृषभ रूप धारण कर विष्णु पुत्रों का संहार किया।

11- यतिनाथ अवतार 
भगवान शंकर ने यतिनाथ अवतार लेकर अतिथि के महत्व का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस अवतार में अतिथि बनकर भील दम्पत्ति की परीक्षा ली थी, जिसके कारण भील दम्पत्ति को अपने प्राण गवाने पड़े। धर्म ग्रंथों के अनुसार अर्बुदाचल पर्वत के समीप शिवभक्त आहुक-आहुका भील दम्पत्ति रहते थे। एक बार भगवान शंकर यतिनाथ के वेष में उनके घर आए। उन्होंने भील दम्पत्ति के घर रात व्यतीत करने की इच्छा प्रकट की। आहुका ने अपने पति को गृहस्थ की मर्यादा का स्मरण कराते हुए स्वयं धनुषबाण लेकर बाहर रात बिताने और यति को घर में विश्राम करने देने का प्रस्ताव रखा। इस तरह आहुक धनुषबाण लेकर बाहर चला गया। प्रात:काल आहुका और यति ने देखा कि वन्य प्राणियों ने आहुक का मार डाला है। इस पर यतिनाथ बहुत दु:खी हुए। तब आहुका ने उन्हें शांत करते हुए कहा कि आप शोक न करें। अतिथि सेवा में प्राण विसर्जन धर्म है और उसका पालन कर हम धन्य हुए हैं। जब आहुका अपने पति की चिताग्नि में जलने लगी तो शिवजी ने उसे दर्शन देकर अगले जन्म में पुन: अपने पति से मिलने का वरदान दिया।

12- कृष्णदर्शन अवतार 
भगवान शिव ने इस अवतार में यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों के महत्व को बताया है। इस प्रकार यह अवतार पूर्णत: धर्म का प्रतीक है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्धदेव की नवमी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ। विद्या-अध्ययन को गुरुकुल गए नभग जब बहुत दिनों तक न लौटे तो उनके भाइयों ने राज्य का विभाजन आपस में कर लिया। नभग को जब यह बात ज्ञात हुई तो वह अपने पिता के पास गए। पिता ने नभग से कहा कि वह यज्ञ परायण ब्राह्मणों के मोह को दूर करते हुए उनके यज्ञ को सम्पन्न करके, उनके धन को प्राप्त करे। तब नभग ने यज्ञभूमि में पहुंचकर वैश्य देव सूक्त के स्पष्ट उच्चारण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया। अंगारिक ब्राह्मण यज्ञ अवशिष्ट धन नभग को देकर स्वर्ग को चले गए। उसी समय शिवजी कृष्णदर्शन रूप में प्रकट होकर बोले कि यज्ञ के अवशिष्ट धन पर तो उनका अधिकार है। विवाद होने पर कृष्णदर्शन रूपधारी शिवजी ने उसे अपने पिता से ही निर्णय कराने को कहा। नभग के पूछने पर श्राद्धदेव ने कहा-वह पुरुष शंकर भगवान हैं। यज्ञ में अवशिष्ट वस्तु उन्हीं की है। पिता की बातों को मानकर नभग ने शिवजी की स्तुति की।

13- अवधूत अवतार
भगवान शंकर ने अवधूत अवतार लेकर इंद्र के अंहकार को चूर किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय बृहस्पति और अन्य देवताओं को साथ लेकर इंद्र शंकर जी के दर्शनों  के लिए कैलाश पर्वत पर गए। इंद्र की परीक्षा लेने के लिए शंकरजी ने अवधूत रूप धारण कर उनका मार्ग रोक लिया। इंद्र ने उस पुरुष से अवज्ञापूर्वक बार-बार उसका परिचय पूछा तो भी वह मौन रहा। इस पर क्रुद्ध होकर इंद्र ने ज्यों ही अवधूत पर प्रहार करने के लिए वज्र छोडऩा चाहा, वैसे ही उनका हाथ स्तंभित हो गया। यह देखकर बृहस्पति ने शिवजी को पहचान कर अवधूत की बहुविधि स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इंद्र को क्षमा कर दिया।

14- भिक्षुवर्य अवतार 
भगवान शंकर देवों के देव हैं। संसार में जन्म लेने वाले हर प्राणी के जीवन के रक्षक भी हैं। भगवान शंकर काभिक्षुवर्य अवतार यही संदेश देता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार विदर्भ नरेश सत्यरथ को शत्रुओं ने मार डाला। उसकी गर्भवती पत्नी ने शत्रुओं से छिपकर अपने प्राण बचाए। समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। रानी जब जल पीने के लिए सरोवर गई तो उसे घडिय़ाल ने अपना आहार बना लिया। तब वह बालक भूख-प्यास से तड़पने लगा। इतने में ही शिवजी की प्रेरणा से एक भिखारिन वहां पहुंची। तब शिवजी ने भिक्षुक का रूप धर उस भिखारिन को बालक का परिचय दिया और उसके पालन-पोषण का निर्देश दिया तथा यह भी कहा कि यह बालक विदर्भ नरेश सत्यरथ का पुत्र है। यह सब कह कर भिक्षुक रूपधारी शिव ने उस भिखारिन को अपना वास्तविक रूप दिखाया। शिव के आदेश अनुसार भिखारिन ने उस बालक का पालन-पोषण किया। बड़ा होकर उस बालक ने शिवजी की कृपा से अपने दुश्मनों को हराकर पुन: अपना राज्य प्राप्त किया।

15- सुरेश्वर अवतार 
भगवान शंकर का सुरेश्वर (इंद्र) अवतार भक्त के प्रति उनकी प्रेमभावना को प्रदर्शित करता है। इस अवतार में भगवान शंकर ने एक छोटे से बालक उपमन्यु की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपनी परम भक्ति और अमर पद का वरदान दिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार व्याघ्रपाद का पुत्र उपमन्यु अपने मामा के घर पलता था। वह सदा दूध की इच्छा से व्याकुल रहता था। उसकी मां ने उसे अपनी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए शिवजी की शरण में जाने को कहा। इस पर उपमन्यु वन में जाकर ऊँ नम: शिवाय का जप करने लगा। शिवजी ने सुरेश्वर (इंद्र) का रूप धारण कर उसे दर्शन दिया और शिवजी की अनेक प्रकार से निंदा करने लगा। इस पर उपमन्यु क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए खड़ा हुआ। उपमन्यु को अपने में दृढ़ शक्ति और अटल विश्वास देखकर शिवजी ने उसे अपने वास्तविक रूप के दर्शन कराए तथा क्षीरसागर के समान एक अनश्वर सागर उसे प्रदान किया। उसकी प्रार्थना पर कृपालु शिवजी ने उसे परम भक्ति का पद भी दिया।

16- किरात अवतार
किरात अवतार में भगवान शंकर ने पाण्डुपुत्र अर्जुन की वीरता की परीक्षा ली थी। महाभारत के अनुसार कौरवों ने छल-कपट से पाण्डवों का राज्य हड़प लिया व पाण्डवों को वनवास पर जाना पड़ा। वनवास के दौरान जब अर्जुन भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या कर रहे थे, तभी दुर्योधन द्वारा भेजा हुआ मूड़ नामक दैत्य अर्जुन को मारने के लिए शूकर( सुअर) का रूप धारण कर वहां पहुंचा।
अर्जुन ने शूकर पर अपने बाण से प्रहार किया, उसी समय भगवान शंकर ने भी किरात वेष धारण कर उसी शूकर पर बाण चलाया। शिव कीमाया के कारण अर्जुन उन्हें पहचान न पाए और शूकर का वध उसके बाण से हुआ है, यह कहने लगे। इस पर दोनों में विवाद हो गया। अर्जुन ने किरात वेषधारी शिव से युद्ध किया। अर्जुन की वीरता देख भगवान शिव प्रसन्न हो गए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर अर्जुन को कौरवों पर विजय का आशीर्वाद दिया।

17- सुनटनर्तक अवतार 
पार्वती के पिता हिमाचल से उनकी पुत्री का हाथ मागंने के लिए शिवजी ने सुनटनर्तक वेष धारण किया था। हाथ में डमरू लेकर शिवजी नट के रूप में हिमाचल के घर पहुंचे और नृत्य करने लगे। नटराज शिवजी ने इतना सुंदर और मनोहर नृत्य किया कि सभी प्रसन्न हो गए। जब हिमाचल ने नटराज को भिक्षा मांगने को कहा तो नटराज शिव ने भिक्षा में पार्वती को मांग लिया। इस पर हिमाचलराज अति क्रोधित हुए। कुछ देर बाद नटराज वेषधारी शिवजी पार्वती को अपना रूप दिखाकर स्वयं चले गए। उनके जाने पर मैना और हिमाचल को दिव्य ज्ञान हुआ और उन्होंने पार्वती को शिवजी को देने का निश्चय किया।

18- ब्रह्मचारी अवतार 
दक्ष के यज्ञ में प्राण त्यागने के बाद जब सती ने हिमालय के घर जन्म लिया तो शिवजी को पति रूप में पाने के लिए घोर तप किया। पार्वती की परीक्षा लेने के लिए शिवजी ब्रह्मचारी का वेष धारण कर उनके पास पहुंचे। पार्वती ने ब्रह्मचारी  को देख उनकी विधिवत पूजा की। जब ब्रह्मचारी ने पार्वती से उसके तप का उद्देश्य पूछा और जानने पर शिव की निंदा करने लगे तथा उन्हें श्मशानवासी व कापालिक भी कहा। यह सुन पार्वती को बहुत क्रोध हुआ। पार्वती की भक्ति व प्रेम को देखकर शिव ने उन्हें अपना वास्तविक स्वरूप दिखाया। यह देख पार्वती अति प्रसन्न हुईं।

19- यक्ष अवतार 
यक्ष अवतार  शिवजी ने देवताओं के अनुचित और मिथ्या अभिमान को दूर करने के लिए धारण किया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवता व असुर द्वारा किए गए समुद्रमंथन के दौरान जब भयंकर विष निकला तो भगवान शंकर ने उस विष को ग्रहण कर अपने कण्ठ में रोक लिया। इसके बाद अमृत कलश निकला। अमृतपान करने से सभी देवता अमर तो हो गए साथ ही उनहें अभिमान भी हो गया कि वे सबसे बलशाली हैं। देवताओं के इसी अभिमान को तोडऩे के लिए शिवजी ने यक्ष का रूप धारण किया व देवताओं के आगे एक तिनका रखकर उसे काटने को कहा। अपनी पूरी शक्ति लगाने पर भी देवता उस तिनके को काट नहीं पाए। तभी आकाशवाणी हुई कि यह यक्ष सब गर्वों के विनाशक शंकर भगवान हैं। सभी देवताओं ने भगवान शंकर की स्तुति की तथा अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी।

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Saturday, June 10, 2017

मेहंदिपुर बालाजी


राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के बीच बसा हुआ मेहंदीपुर नामक स्थान है। यह मंदिर जयपुर-बांदीकुई-बस मार्ग पर जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। दो पहाडिय़ों के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं। जनश्रुति है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। इसे ही श्री हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है।

इनके चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है तथा इसी वजह से यह स्थान न केवल राजस्थान में बल्कि पूरे देश में विख्यात है। कहा जाता है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए परंतु चमत्कारी रूप से यह मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।

इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों का तांता लगा रहता है। मंदिर की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं।

Thursday, June 8, 2017

कमलनाथ महादेव मंदिर

                      कमलनाथ महादेव


झीलों की नगरी उदयपुर से तकरिबन 80 किलोमीटर झाडौल तहसील में आवारगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का एक प्राचीन मंदिर स्तिथ है जो की कमलनाथ महादेव के नाम से प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना स्वंय लंकापति रावण ने की थी। यही वह स्थान है जहां रावण ने अपना शीश भगवान शिव को अग्निकुंड में समर्पित कर दिया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव नें रावण की नाभि में अमृत कुण्ड स्थापित किया था। इस स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है की यहां भगवान शिव से पहले रावण की पूजा की जाती है क्योकि मान्यता है की शिव से पहले यदि रावण की पूजा नहीं की जाए तो सारी पूजा व्यर्थ जाती है।

पुराणो में वर्णित कमलनाथ महादेव की कथा :

एक बार लंकापति रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर पहुंचे और तपस्या करने लगे, उसके कठोर तप से प्रसन्न हो भगवान शिव ने रावण से वरदान मांगने को कहा। रावण ने भगवान शिव से लंका चलने का वरदान मांग डाला। भगवान शिव लिंग के रूप में उसके साथ जाने को तैयार हो गए, उन्होंने रावण को एक शिव लिंग दिया और यह शर्त रखी कि यदि लंका पहुंचने से पहले तुमने शिव लिंग को धरती पर कहीं भी रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगा। कैलाश पर्वत से लंका का रास्ता काफी लम्बा था, रास्ते में रावण को थकावट महसूस हुई और वह आराम करने के लिए एक स्थान पर रुक गया। और ना चाहते हुए भी शिव लिंग को धरती पर रखना पड़ा।

आराम करने के बाद रावण ने शिव लिंग उठाना चाहा लेकिन वह टस से मस ना हुआ, तब रावण को अपनी गलती का एहसास हुआ और पश्चाताप करने के लिए वह वहीं पर पुनः तपस्या करने लगे। वो दिन में एक बार भगवान शिव का सौ कमल के फूलों के साथ पूजन करते थे। ऐसा करते-करते रावण को साढ़े बारह साल बीत गए। उधर जब ब्रह्मा जी को लगा कि रावण की तपस्या सफल होने वाली है तो उन्होंने उसकी तपस्या विफल करने के उद्देश्य से एक दिल पूजा के वक़्त एक कमल का पुष्प करा लिया। उधर जब पूजा करते वक़्त एक पुष्प कम पड़ा तो रावण ने अपना एक शीश काटकर भगवान शिव को अग्नि कुण्ड में समर्पित कर दिया। भगवान शिव रावण की इस कठोर भक्ति से फिर प्रसन्न हुए और वरदान स्वरुप उसकी नाभि में अमृत कुण्ड की स्थापना कर दी। साथ ही इस स्थान को कमलनाथ महादेव के नाम से घोषित कर दिया।

पहाड़ी पर मंदिर तक जाने के लिए आप नीचे स्तिथ शनि महाराज के मंदिर तक तो अपना साधन लेके जा सकते है पर आगे का 2 किलोमीटर का सफर पैदल ही पूरा करना पड़ता है। इसी जगह पर भगवान राम ने भी अपने वनवास का कुछ समय बिताया था।

Wednesday, June 7, 2017

काल भैरव

"""""""""काल भैरव का मंदिर ,उज्जैन""""""""""""""""


मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर से करीब 8 कि.मी. दूर कालभैरव मंदिर स्थित है। भगवान कालभैरव को प्रसाद के तौर पर केवल शराब ही चढ़ाई जाती है। शराब से भरे प्याले कालभैरव की मूर्ति के मुंह से लगाने पर वह देखते ही देखते खाली हो जाते हैं। मंदिर के बाहर भगवान कालभैरव को चढ़ाने के लिए देसी शराब की आठ से दस दुकानें लगी हैं।

मंदिर में शराब चढ़ाने की गाथा भी बेहद दिलचस्प है। यहां के पुजारी बताते हैं कि स्कंद पुराण में इस जगह के धार्मिक महत्व का जिक्र है। इसके अनुसार, चारों वेदों के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फैसला किया, तो उन्हें इस काम से रोकने के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए। ब्रह्मा जी ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर शिवजी ने क्रोधित होकर अपने तीसरे नेत्र से बालक बटुक भैरव को प्रकट किया। इस उग्र स्वभाव के बालक ने गुस्से में आकर ब्रह्मा जी का पांचवां मस्तक काट दिया। इससे लगे ब्रह्म हत्या के पाप को दूर करने के लिए वह अनेक स्थानों पर गए, लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। तब भैरव ने भगवान शिव की आराधना की। शिव ने भैरव को बताया कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर ओखर श्मशान के पास तपस्या करने से उन्हें इस पाप से मुक्ति मिलेगी। तभी से यहां काल भैरव की पूजा हो रही है। कालांतर में यहां एक बड़ा मंदिर बन गया। मंदिर का जीर्णोद्धार परमार वंश के राजाओं ने करवाया था

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Tuesday, June 6, 2017

चारधाम की यात्रा

:::::::::::::::चारधाम की यात्रा::::::::::::::::::::::::::

1. बदरीनाथ धाम

कहां है- उत्तर दिशा में हिमालय पर अलकनंदा नदी के पास

प्रतिमा- विष्णु की शालिग्राम शिला से बनी चतुर्भुज मूर्ति। इसके आसपास बाईं ओर उद्धवजी तथा दाईं ओर कुबेर की प्रतिमा।

2. द्वारका धाम

कहां है- पश्चिम दिशा में गुजरात के जामनगर के पास समुद्र तट पर।

प्रतिमा- भगवान श्रीकृष्ण।

3. रामेश्वरम

कहां है- दक्षिण दिशा में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के बीच रामेश्वर द्वीप।

प्रतिमा- शिवलिंग

4. जगन्नाथपुरी

कहां है- पूर्व दिशा में उड़ीसा राज्य के पुरी में।

प्रतिमा- विष्णु की नीलमाधव प्रतिमा जो जगन्नाथ कहलाती है। सुभद्रा और बलभद्र की प्रतिमाएं भी।

Monday, June 5, 2017

कामाख्या माता मन्दिर

                 ** कामाख्या माता **

कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर देवी कामाख्या को समर्पित है। कामाख्या शक्तिपीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है तथा यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है। जब सती  के  पिता  दक्ष  ने  अपनी पुत्री सती और उस के पति शंकर को  यज्ञ में अपमानित किया और शिव जी को अपशब्द  कहे तो सती ने दुःखी हो कर आत्म-दहन कर लिया। शंकर  ने सती कि  मॄत-देह को उठा कर संहारक नृत्य किया। तब सती के  शरीर  के 51 हिस्से अलग-अलग जगह पर गिरे जो 51 शक्ति पीठ कहलाये। कहा जाता है सती का योनिभाग कामाख्या में गिरा। उसी  स्थल पर कामाख्या  मन्दिर का निर्माण किया गया।

इस मंदिर के गर्भ गृह में योनि के आकार का एक कुंड  है जिसमे से जल निकलता रहता है। यह योनि कुंड कहलाता है।  यह योनि कुंड  लाल कपडे व फूलो से ढका रहता है।

इस मंदिर में प्रतिवर्ष अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें देश भर के तांत्रिक और अघौरी हिस्‍सा लेते हैं।  ऐसी मान्यता है कि 'अम्बुबाची मेले' के दौरान मां कामाख्या रजस्वला होती हैं, और इन तीन दिन में योनि  कुंड से जल प्रवाह कि जगह रक्त प्रवाह होता है । 'अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुंभ कहा जाता है।

मां कामाख्या देवी की रोजाना पूजा के अलावा भी साल में कई बार कुछ विशेष पूजा का आयोजन होता है। इनमें पोहन बिया, दुर्गाडियूल, वसंती पूजा, मडानडियूल, अम्बूवाकी और मनसा दुर्गा पूजा प्रमुख हैं।

दुर्गा पूजा: -  हर साल सितम्बर-अक्टूबर के महीने में नवरात्रि के दौरान इस पूजा का आयोजन किया जाता है।


अम्बुबाची पूजा: - ऐसी मान्यता है कि अम्बुबाची पर्व के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती है इसलिए  तीन दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है। चौथे दिन जब मंदिर खुलता है तो इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
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Thursday, March 16, 2017

करिऐ रामभक्त हनुमान का उपवास और रहिऐ सभी दुखो से दुर


रामभक्त हनुमान की उपासना से जीवन के सारे कष्ट, संकट मिट जाते है। बजरंगबली का नाम उन देवताओं में शामिल किया गया है जो थोड़ी-सी प्रार्थना और पूजा से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। इतिहास साक्षी है जब-जब भक्तों पर संकट के बादल मंडराए हैं, तब-तब भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में अवतार लिया है। हनुमान चलीसा में साफ़-साफ़ लिखा है कि नासै रोग हरय सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बलबीरा’। बजरंग बली का नाम लेने मात्र से ही लोगों के सारे दुःख दूर हो जाते हैं।
‘नासै रोग हरय सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बलबीरा’

बजरंग बली की भक्ति करने वाले को बल, बुद्धि और विद्या सहज में ही प्राप्त हो जाती है। हनुमान जी जीवन के सभी क्लेश को दूर कर देते हैं। मंगलवार को हनुमान जी की पूजा और भक्ति का विशिष्ट दिवस माना गया है। वैसे तो इनका जन्म दिवस शनिवार को माना गया है। बजरंगबली तो लोग अनेकों नाम से पुकारते हैं। लेकिन आज आपको 12 ऐसे नाम बताने जा रहे हैं जिनके बारे में मान्यता है कि यदि प्रतिदिन सोने से पहले इन नामों का जप किया जाए तो हनुमानजी दसों दिशाओं से उसकी रक्षा करते हैं
हनुमान जी के बारह नाम-

राम भक्त, महाबल, महावीर हनुमान, बजरंग बली, शंकर सुमन, केसरी नंदन, अंजनी पुत्र, पवन सुत, अमित विक्रम, समेष्ट, लक्ष्मण, प्राण दाता
हनुमान जी के इन 12 नामों को ले अवश्य लें। सुबह उठते ही इन 12 नामों को ग्यारह बार बोलें इससे व्यक्ति की आयु लंबी होती है। नियम के समय नाम लेने वाला व्यक्ति पारिवारिक सुखों से तृप्त होता है। रात को सोते समय नाम लेने वाला व्यक्ति शत्रुजित होता है। इन बारह नामों का निरंतर जाप करने वाले व्यक्ति की श्री हनुमान जी महाराज दसों दिशाओं से एवं आकाश-पाताल से रक्षा करते हैं।
यात्रा के समय एवं न्यायालय में पड़े विवाद के लिए बारह नाम अपना चमत्कार दिखाएंगे। लाल स्याही से मंगलवार को भोज पत्र पर ये बारह नाम लिखकर मंगलवार के ही दिन ताबीज बांधने से कभी सिरदर्द नहीं होगा। गले या बाजू में ताम्बे का ताबीज ज्यादा उत्तम है।

Tuesday, March 14, 2017

भूलकर भी मत रखना घर में गुथा हुआ आटा.....


ज़्यादातर लोग अपने घर में आटा गूथकर भूल जाते है या फिर बाद में बनाने के लिए रख देते हैं।अगर आप भी ऐसा करते हैं। तो हो जाईये सावधान। ऐसा करना आपको किसी मुसीबत में दाल सकता है. विशेषज्ञों का मानना है की फ्रिज में गूथा हुआ आटा रखना घर में भूत-प्रेत को निमंत्रित करने का काम करता हैं।

गूंथा हुआ आटा उस पिंड की तरह माना जाता है जो पिंड मृत्यु के बाद मरे हुए आदमी की आत्मा की शांति के लिए रखे जाते हैं। गूथा हुआ आटा भूतों को अपनी तरफ आकर्षित करता है.जब हम लगातार अपने घर के फ्रिज में गूंथा हुआ आटा रख देते हैं तो भूत इस पिंड का भक्षण करने के लिए घर में आने शुरू हो जाते हैं जो मृत्यु के बाद पिंड पाने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे भूत और प्रेत फ्रीज में रखे इस पिंड से तृप्ति पाने का उपक्रम करते हैं।

जिस भी परिवार के लोग इस आदत को अपनाते हैं,उस परिवार में कोई न कोई बुरी घटना होने का खतरा बना रहता है साथ ही ऐसे परिवारों में रोग-शोक और क्रोध तथा आलस्य का डेरा होता है।



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Friday, February 24, 2017

देवो के देव महादेव..........


त्रिदेवों में से एक देव हैं शिव, भगवान शिव को देवों के देव महादेव भी कहा जाता है। भगवान शिव को कई और नामों से भी पुकारा जाता है जैसे- महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ।

तंत्र साधना में भगवान शिव को भैरव के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं भगवान शिव, वेद में इन्हें रुद्र के नाम से भी जाना जाता है।
शिव इंसान की चेतना के अन्तर्यामी हैं यानी इंसान के मन की बात पढ़ने वाले हैं। इनकी अर्धांग्नि यानि देवी शक्ति को माता पार्वती के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं और एक पुत्री अशोक सुंदरी भी हैं।


शिव जी को आपने अधिकतर योग की मुद्रा में ही देखा होगा। लेकिन उनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। शिव जी के गले में हमेशा नाग देवता विराजमान रहते हैं और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल दिखाई देता हैं। भगवान सदाशिव परम ब्रह्म है। अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान इन्हीं को ईश्वर कहते हैं।
अकेले रहकर अपनी इच्छाम से सभी ओर विचरण करने वाले सदाशिव ने अपने शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी.देवी शक्ति को पार्वती के रूप में जाना गया और भगवान शिव को अर्धनारिश्वबर के रूप में। वहीं देवी शक्ति को प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित माना गया.श्रीमद् देवी महापुराण के मुताबिक, भगवान शिव के पिता के लिए भी एक कथा है।


देवी महापुराण के मुताबिक, एक बार जब नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया? आपने, भगवान विष्णु ने या फिर भगवान शिव ने? आप तीनों को किसने जन्म दिया है यानी आपके तीनों के माता-पिता कौन हैं?तब ब्रह्मा जी ने नारदजी से त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि देवी दुर्गा और शिव स्वरुप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है।यानि प्रकृति स्वरुप दुर्गा ही माता हैं और ब्रह्म यानि काल-सदाशिव पिता हैं।
एक बार श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी का इस बात पर झगड़ा हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह सृष्टिी मुझसे उत्पन्न हुई है, मैं प्रजापिता हूँ। इस पर विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है।
सदाशिव ने विष्णु जी और ब्रह्मा जी के बीच आकर कहा, हे पुत्रों! मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार और तिरोगति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है. मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ), तीसरे मुख से मुकार , चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्र है। उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है।


Wednesday, February 22, 2017

जानिये हनुमान चालीसा पढ़ने के फाएदे

जो भी इंसान हनुमान चालीसा को रात में पढे़गा उसे हनुमान जी स्‍वंय आ कर सुरक्षा प्रदान करेगें।

हनुमान चालीसा को महान कवि तुलसीदास जी ने लिखा था। वह भी भगवान राम के बड़े भक्त थे और हनुमान जी को बहुत मानते थे। इसमें 40 छंद होते हैं जिसके कारण इसको चालीसा कहा जाता है। यदि कोई भी इसका पाठ करता है तो उसे चालीसा पाठ बोला जाता है। बचपन से ही हमें सिखाया गया है कि अगर कभी भी मन अशांत लगे या फिर किसी चीज से डर लगे तो, हनुमान चालीसा पढ़ो। ऐसा करने से मन शांत होता है और डर भी नहीं लगता। हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्व है। हनुमान चालीसा पढ़ने से शनि ग्रह और साढे़ साती का प्रभाव कम होता है।
हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है।हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा का महत्व बहुत अधिक है। आइए जानते है हनुमान चालीसा के खास महत्वों के बारे में:

हनुमान चालीसा में भगवान हनुमान के जीवन का सार छुपा है जिसे पढ़ने से जीवन में प्रेरणा मिलती है। यह सिर्फ तुलसीदास जी के विचार नहीं बल्कि उनका अटूट विश्वास है। उनके इसी विश्वास के कारण औरेंगजेब ने उन्हे बंदी बना लिया था। वहीं बैठकर उन्होने हनुमान चालीसा लिखा था।
कहते है हनुमान चालीसा को डर, भय, संकट या विपत्ति आने पर पढ़ने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
अगर किसी व्यक्ति पर शनि का संकट छाया है तो उस व्यक्ति का हनुमान चालीसा पढ़ना चाहिए। इसस उसके जीवन में शांति आती है।
अगर किसी व्यक्ति को बुरी शक्तियां परेशान करती हैं तो उसे चालीसा पढ़ने से मुक्ति मिल जाती है।
कोई भी अपराध करने पर अगर आप ग्लानि महसूस करते हैं और क्षमा मांगना चाहते है तो चालीसा का पाठ करें।
भगवान गणेश की तरह हनुमान जी भी कष्ट हरते हैं। ऐसे में हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी लाभ मिलता है।
हनुमान चालीसा पढ़ने से मन शांत होता है तनाव मुक्त हो जाता है।
सुरक्षित यात्रा के लिए हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ें। इससे लाभ मिलता है और भय नहीं लगता है।
किसी भी प्रकार की इच्छा होने पर भगवन हनुमान के चालीसा का पाठ पढ़ने से लाभ मिलता है।
हनुमान चालीसा के पाठ से दैवीय शक्ति मिलती है। इससे सुकुन मिलता है।
हनुमान जी बुद्धि और बल के ईश्वर हैं। उनका पाठ करने से यह दोनों ही मिलते हैं।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से कुटिल से कुटिल व्यक्ति का मन भी अच्छा हो जाता है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से एकता की भावना में विकास होता है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से नकरात्मक भावनाएं दूर हो जाती है और मन में सकारात्मकता आती है।
बुरी आत्माओं को भगाए: हनुमान जी अत्यंत बलशाली थे और वह किसी से नहीं डरते थे। हनुमान जी को भगवान माना जाता है और वे हर बुरी आत्माओं का नाश कर के लोगों को उससे मुक्ती दिलाते हैं। जिन लोगों को रात मे डर लगता है या फिर डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये।
हनुमान चालीसा पढ़ कर आप शनि देव को खुश कर सकते हैं और साढे साती का प्रभाव कम करने में सफल हो सकते हैं। कहानी के मुताबिक हनुमान जी ने शनी देव की जान की रक्षा की थी, और फिर शनि देव ने खुश हो कर यह बोला था कि वह आज के बाद से किसी भी हनुमान भक्त का कोई नुकसान नहीं करेगें।
हम कभी ना कभी जान बूझ कर या फिर अनजाने में ही गल्तियां कर बैठते हैं। लेकिन आप उसकी माफी हनुमान चालीसा पढ़ कर मांग सकते हैं। रात के समय हनुमान चालीसा को 8 बार पढ़ने से आप सभी प्रकार के पाप से मुक्त हो सकते हैं।


   

Sunday, January 29, 2017

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Saturday, January 28, 2017

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास

तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास :-
चोल, होयसल तथा विजय नगर के राजाओ ने इस मंदिर के निर्माण में आर्थिक रूप से अपना अत्यधिक योगदान दिया. माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण 9 वी शताब्दी से आरम्भ हुजब कांचीपुरम के शासक वंश पल्लवो ने इस स्थान पर कब्जा जमा लिया था . 15 वी शताब्दी में विजयनगर वंश के शासन के दौरान भी इस मंदिर की ख्याति कुछ अधिक नहीं थी. 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजो के शासन काल में इस मंदिर की देखरेख हातिरम मठ के प्रबंधक ने संभाली थी. 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार के अधीन आ गया तथा उन्होंने स्वतंत्र रूप से इस मंदिर का कार्य तिरुमाला-तिरुपति को सोप दिया. आंध्रप्रदेश के अलग राज्य बनने के पश्चात इस मंदिर की समिति का पुर्नगठन हुआ.

वेंकेटेश्वर  को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजे जाने वाले दक्षिण भारत के इस मंदिर के संबंध में यह मान्यता है की स्वयं भगवान विष्णु ने तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब पर निवास किया था. मंदिर के बिलकुल बगल में स्थित पुष्करणी के पवित्र जलकुंड से जल मंदिर के कार्यो में प्रयोग में लाया जाता है जैसे भगवान की प्रतिमा को स्नान कराने व मंदिर की सफाई करने में. पुष्करणी का जल बहुत ही साफ एवं किटाणु रहित है. इस पवित्र जलकुंड में श्रृद्धालु डुबकी लगाते है. कहा जाता है की इस पवित्र जल कुंड में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी जन्मों के पाप धूल जाते है. माना जाता है की वैकुंठ में विष्णु इसी तालाब में स्नान किया करते थे. बगैर इस कुंड में स्नान करें किसी को भी मंदिर में जाने की आज्ञा नहीं है, इस मंदिर के कुंड में स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों ही पवित्र हो जाते है.

आइऐ कुछ और बाते जानते हैं तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में :
तिरुपति बालाजी का मंदिर  विश्व भर में प्रसिध्द हैं। यह मंदिर दक्षिण भारत के चित्तूर जिले में तिरुमाला पहाड़ पर स्थित है. हर साल करोड़ो श्रृद्धालु दूर-दूर से तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए आते हैं , साल के हर महीने मंदिर में श्रृद्धालुओ का ताँता लगा रहता है. इसके साथ ही विश्व के सर्वाधिक धनी मंदिरों में भी यह मंदिर शामिल है. इस मंदिर का निर्माण कई शताब्दी पूर्व हुआ है तथा इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का संगम शैलानियों  को अपनी ओर आकर्षित करता है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है यही कारण है की वेंकेटेश्वर  मंदिर को दुनिया का सबसे पूजनीय स्थल कहा गया है.

भगवान विष्णु को ही यहाँ वेंकेटेश्वर के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही भगवान विष्णु यहाँ श्रीनिवास, बालाजी के नाम से भी प्रसिद्ध है. वैष्णव परम्पराओ के अनुसार इस मंदिर को 108 दिव्य देसमों का अंग माना गया है.


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Friday, January 27, 2017

मृत्यु से पहले मिलने वाले ये पांच संकेत

संसार में किसकी मृत्यु कब होगी किसी को नहीं पता। लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शंकर से संबंधित शिवपुराण में आपको इसका जवाब मिलेगा। इस ग्रंथ में भगवान शिव से संबंधित अनेक रहस्यमयी बातें बताई गई हैं। शिवपुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को मृत्यु के संबंध में कुछ विशेष संकेत बताए थे इन संकेतों को समझकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति की मौत कितने समय में हो जाएगी। 

1. शिवपुराण में कहा गया है कि अगर किसी के सिर के ऊपर गिद्ध, कौआ या कबूतर आकर बैठ जाएं या गिद्ध और कौवे घेर लें। तो जान लीजिए कि उस व्यक्ति के पास बहुत कम दिन बचें है।


2. इस ग्रंथ के अनुसार यदि किसी व्यक्ति का शरीर सफेद या पीला पड़ जाए और लाल निशान दिखाई दें तो समझ लीजिए कि उसकी मृत्यु 6 महीने के अंदर हो जाएगी।


3. शिवपुराण के अनुसार जब किसी मनुष्य का बायां हाथ लगातार एक सप्ताह तक फड़कता रहे, तब उसका जीवन एक महीने ही शेष है।

4. शिवपुराण के अनुसार जिस व्यक्ति को अग्नि का प्रकाश ठीक से दिखाई न दे और चारों ओर काला अंधकार दिखाई दे तो उसका जीवन भी 6 महीने के अंदर खत्म हो जाता है।


5. इस ग्रंथ के अनुसार जब किसी व्यक्ति को जल, तेल या आइने में अपनी परछाई न दिखाई दे, तो समझना चाहिए कि उसकी आयु 6 महीने से अधिक नहीं है।

Thursday, January 26, 2017

Planting trees in the house which is away from the negative forces

VAASTU AND PLANTING

Vaastu is considered that the positive energy waves from east to west and from north to south and NE Always the south-west angle Nahrity flows. So keep in mind that East and north light, small and less dense vegetation to grow. Coming in the way of positive energy in the home is not a lock.
Basil extremely helpful These directions come to the house for the sake of increasing the positive energy in the air basil plant are considered extremely useful. It is believed that in terms of architectural basil plants and increases positive energy in the air as well as the pure and healthy is also.
These little In addition, in these directions in architectural beneficial medicinal plant plantation also has been reported. Former home, in the North and East mint, Lemngras, khas, coriander, cumin, turmeric, ginger, etc., giving the appearance of freshness galvanized body, mind and that is considered healthy.

Money Plant and Christmas Tree BK Acharya Shastri and money plant tree, also show that people spend at home. Both in terms of architectural plant prosperity factors are considered. Many families in the city has put these plants in their homes. Christian families in their homes, money plant tree plant every religion and race can be seen in people's homes. Beautiful Balcony Near the main entrance to your house, East, North and East on the balcony rose, jasmine, Glediolai, Cosmos, Kocia, Gazania, marigold flowers and evergreen plants can be planted like. If you stand at the place they can be planted in the pot. West or at home Dkshinmuki West and in the case of home Dkshinmuki leading or main door to the large trees can be planted with vine seedlings. Attention to these Find south or west sides of the house -pedon. Trees not only look in one direction must be engaged in these two directions. Apply single basil plant in the home. The north, east or north-east side or front of the house can also. Never Find -Main door tree. Svetark at the main entrance to the architectural vision of the good fruitful. -nim, Sandalwood, lemon, mango, amla and pomegranate trees can be planted in the house. Find -katon not plant. Rose plant thorns in the house other than the negative energy flow. Remember that the number of trees in focus Agn 2, 4, 6, 8 even number should be like .., not odd.





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HIBISCUS PLANT
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Monday, January 23, 2017

RAVANA TEN HEAD STORY


RAVANA TEN HEAD STORY





Ravana was a great devotee of Lord Shiva too. Ravana was a penance to Lord Shiva. While penance to Lord Shiva gave Ravana sacrificed his head. Love and devotion of Lord Shiva is a Prsnn like Ravana and Ravana turned his head back. Ravana then sacrificed his head Kshivji turned his head back again. Ravana repeatedly makes such sacrifice your head and turn his head back every time Shiva. Ravana did so 10 times like these to worship Lord Shiva, Ravana Prsnn awake too. 10 Ravana head and turned back. Thus the ten heads of Ravana and she called Dsanand.

Where is located 12 Jyotirling

12 JYOTIRLING


According to the Puranas, Shiva is worshiped by the man's wishes fulfilled. Lingam of Lord Shiva are pleased to offer the only water. 12 is the luckiest creature philosophy of Jyotirlingams. Shivpuran narrative description of the twelve revered honor is given. The revered 12 Mallikarjunm, Vadyanatham, Kedarnatham, Somnatham, Bimshankrm, Nageshwarm, Bisweshwarm, Trynmbkeshhwar, Rameshwar, Grishneshwarm, Mmleshhwar and is Mahakaleshhwarm. Everyone can not see all of these. Located just lucky people across the country find Jyotirlings philosophy. Know the 12 revered Shiva 1. Somnath jyotirling This lingam is established in Kathiawar in Gujarat.

2.Mallikarjuna jyotirling Mr. Krishna river bank in Madras Sthatip Shell Mallikarjun Shivling mountain.
3. Mahakaleshwar jyotirling Founded in the city of Ujjain Mahakaleshwar Avanti Shivling where Shiva had destroyed the demons.
4. Omkareshwar Mmleshhwar jyotirling Omkareshwar shrine on the banks of the Narmada in Madhya Pradesh Vindhya Prwatraj to the harsh austerity Delighted by Vrdane Shiva appeared here. Installed where Mmleshhwar revered.
5. nageshwar jyotirling Gujarat nageshwar jyotirlinga installed near Dwarkadham.
6. Baijnath jyotirling Shivling installed in Bihar Baidyanath Dham.
7. bhimashankar jyotirling Bhima in Maharashtra bhimashankar revered riverside setting.
8. Trimbkeshhwar jyotirling Nashik (Maharashtra), 25 km from the revered Trynmbkeshhwar established.
9. Ghrishneshwar jyotirling Ellora Caves near Aurangabad district of Maharashtra Gumeshwar revered vessel installed in the village.



10. Kedarnath jyotirling Kedarnath revered inaccessible Himalayas. Haridwar is located at a distance of 150 mill.

11. kashi Vishwanath jyotirling Founded in Varanasi Kashi Vishwanath Temple Vishwanath revered.
12. Rameshwaram jyotirling Trichunapalli (Madras), founded by Lord Ram on the beach revered Rameswaram.

Shiv Chalisa

  श्रावन मास के इस पावन अवसर पर पढ़े शिव चालीसा   श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥   जय गिरिज...