तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास :-
चोल, होयसल तथा विजय नगर के राजाओ ने इस मंदिर के निर्माण में आर्थिक रूप से अपना अत्यधिक योगदान दिया. माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण 9 वी शताब्दी से आरम्भ हुजब कांचीपुरम के शासक वंश पल्लवो ने इस स्थान पर कब्जा जमा लिया था . 15 वी शताब्दी में विजयनगर वंश के शासन के दौरान भी इस मंदिर की ख्याति कुछ अधिक नहीं थी. 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजो के शासन काल में इस मंदिर की देखरेख हातिरम मठ के प्रबंधक ने संभाली थी. 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार के अधीन आ गया तथा उन्होंने स्वतंत्र रूप से इस मंदिर का कार्य तिरुमाला-तिरुपति को सोप दिया. आंध्रप्रदेश के अलग राज्य बनने के पश्चात इस मंदिर की समिति का पुर्नगठन हुआ.वेंकेटेश्वर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजे जाने वाले दक्षिण भारत के इस मंदिर के संबंध में यह मान्यता है की स्वयं भगवान विष्णु ने तिरुमला स्थित स्वामी पुष्करणी नामक तालाब पर निवास किया था. मंदिर के बिलकुल बगल में स्थित पुष्करणी के पवित्र जलकुंड से जल मंदिर के कार्यो में प्रयोग में लाया जाता है जैसे भगवान की प्रतिमा को स्नान कराने व मंदिर की सफाई करने में. पुष्करणी का जल बहुत ही साफ एवं किटाणु रहित है. इस पवित्र जलकुंड में श्रृद्धालु डुबकी लगाते है. कहा जाता है की इस पवित्र जल कुंड में डुबकी लगाने से मनुष्य के सभी जन्मों के पाप धूल जाते है. माना जाता है की वैकुंठ में विष्णु इसी तालाब में स्नान किया करते थे. बगैर इस कुंड में स्नान करें किसी को भी मंदिर में जाने की आज्ञा नहीं है, इस मंदिर के कुंड में स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों ही पवित्र हो जाते है.
आइऐ कुछ और बाते जानते हैं तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में :
तिरुपति बालाजी का मंदिर विश्व भर में प्रसिध्द हैं। यह मंदिर दक्षिण भारत के चित्तूर जिले में तिरुमाला पहाड़ पर स्थित है. हर साल करोड़ो श्रृद्धालु दूर-दूर से तिरुपति बालाजी के दर्शन के लिए आते हैं , साल के हर महीने मंदिर में श्रृद्धालुओ का ताँता लगा रहता है. इसके साथ ही विश्व के सर्वाधिक धनी मंदिरों में भी यह मंदिर शामिल है. इस मंदिर का निर्माण कई शताब्दी पूर्व हुआ है तथा इसकी दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्पकला का संगम शैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है यही कारण है की वेंकेटेश्वर मंदिर को दुनिया का सबसे पूजनीय स्थल कहा गया है.
भगवान विष्णु को ही यहाँ वेंकेटेश्वर के नाम से जाना जाता है इसके साथ ही भगवान विष्णु यहाँ श्रीनिवास, बालाजी के नाम से भी प्रसिद्ध है. वैष्णव परम्पराओ के अनुसार इस मंदिर को 108 दिव्य देसमों का अंग माना गया है.
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