संतोषी माता व्रत का महात्म्य व विधि
संतोषी माता के पिता गणेश, माता श्रद्धि-सिध्दि, धन - धान्य, सोना , चाँदी, मोती, मूँगा, रत्नों, से भरा परिवार , पिता गणपति की दुलार भरा कमाई, दरिद्रता दूर, कलह का नाश, सुख-शांति का प्रकास, बालको की फुलवारी, धन्धे में मुनाफे भरा कमाई, मन की कामना पूर्ण, शोक, विपत्ति, चिंता सब दूर। संतोषी माता का लो नाम, जिससे बन जायें सारे काम, बोलो संतोषी माता की जय ।
इस व्रत को करने वाला कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे तथा सुनते वाले ' संतोषी माता की जय-जयकार ' मुख से बोलते जायें । तथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़, चना गौ माता को खिलावें, कलश में रखा हुआ गुड़, चना सबको प्रसाद के रूप में बांट दें । कथा से पहले कलश को जल से भरें । उसके ऊपर गुड़-चने से भरा कटोरा रखें । कथा समाप्त कर आरती करने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़के और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें । सवा रूपये का गुड़, चना लेकर माता का व्रत करें । गुड़ घर में हो तो लेवें, ।विचार न करें, क्योंकि माता भावना की भूखी है -कम ज्यादा का कोई विचार नहीं । इसलिए जितना बन पड़े श्रध्दा से समर्पित करें । श्रध्दा और प्रेम से प्रसन्न मन हो कर ही सदैव व्रत करना चाहिए । व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा , मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का साग ,नैवेद्य रखें, घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय-जयकार बोलें तथा नारियल फोड़े।
इस दिन घर में कोई खटाई न खाएे और न स्वयं खाएे, न किसी दुसरे को खाने दें । कुटुम्बी ना मिलें तो ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के बालक बुलावें,उन्हें खटाई की कोई वस्तु ना दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे न दें,कोई वस्तु दक्षिणा में दें । व्रत करने वाला कथा सुन, प्रसाद ले एक समय भोजन करें, इससे माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होगी तथा मनोकामना पूरी होगी ।
संतोषी माता के पिता गणेश, माता श्रद्धि-सिध्दि, धन - धान्य, सोना , चाँदी, मोती, मूँगा, रत्नों, से भरा परिवार , पिता गणपति की दुलार भरा कमाई, दरिद्रता दूर, कलह का नाश, सुख-शांति का प्रकास, बालको की फुलवारी, धन्धे में मुनाफे भरा कमाई, मन की कामना पूर्ण, शोक, विपत्ति, चिंता सब दूर। संतोषी माता का लो नाम, जिससे बन जायें सारे काम, बोलो संतोषी माता की जय ।
इस व्रत को करने वाला कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने हुए चने रखे तथा सुनते वाले ' संतोषी माता की जय-जयकार ' मुख से बोलते जायें । तथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़, चना गौ माता को खिलावें, कलश में रखा हुआ गुड़, चना सबको प्रसाद के रूप में बांट दें । कथा से पहले कलश को जल से भरें । उसके ऊपर गुड़-चने से भरा कटोरा रखें । कथा समाप्त कर आरती करने के बाद कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़के और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें । सवा रूपये का गुड़, चना लेकर माता का व्रत करें । गुड़ घर में हो तो लेवें, ।विचार न करें, क्योंकि माता भावना की भूखी है -कम ज्यादा का कोई विचार नहीं । इसलिए जितना बन पड़े श्रध्दा से समर्पित करें । श्रध्दा और प्रेम से प्रसन्न मन हो कर ही सदैव व्रत करना चाहिए । व्रत के उद्यापन में अढ़ाई सेर खाजा , मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का साग ,नैवेद्य रखें, घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की जय-जयकार बोलें तथा नारियल फोड़े।
इस दिन घर में कोई खटाई न खाएे और न स्वयं खाएे, न किसी दुसरे को खाने दें । कुटुम्बी ना मिलें तो ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के बालक बुलावें,उन्हें खटाई की कोई वस्तु ना दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे न दें,कोई वस्तु दक्षिणा में दें । व्रत करने वाला कथा सुन, प्रसाद ले एक समय भोजन करें, इससे माता प्रसन्न होगी, दुःख दरिद्रता दूर होगी तथा मनोकामना पूरी होगी ।
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जय माता दी
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