नवरात्र के पावन दिनो मे माँ के नव रुपो की पूजा की जातीहै |
आईये हम आपको माता के नव रुपो के बारे मे बताते है |
- प्रथम शैलपुत्री माता

शरदीय नवरात्र की प्रथम शक्ति शैलपुत्री है|सती जन्म मे राजा दक्ष प्रजापती की पुत्री थी|सती का ही दूसरा स्वरुप पार्वती या शैलपुत्री का है|पर्वतराज की पुत्री होने के कारण ही माँ दुर्गा के प्रथम रुप का नाम शैलपुत्री पड़ा|कठोर तप के बाद भगवान शंकर से इनका विवाह हुआ|शैलपुत्री ही शिवान्गी है|इन्हे सौभाग्य ,प्रकृति और आयु की देवी माना जाता है|
माता शैलपुत्री को लाल पुष्प ,नारियल ,श्रिन्गार सामग्री व गौ घी अर्पित करने से आरोग्य व सौभाग्य का फल प्राप्त होता है|
माँ शैलपुत्री आराधना मंत्र :
या देवी सर्वभुतेषू प्रकृति रूपेण संस्थिता ,नमस्तसयै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
2.द्वितिय ब्रहम्चारिनी
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शरदीय नवरात्र मे माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माता ब्रह्म्चारिनी की आराधना होती है|ब्रह्माजी की शक्ति होने से माँ का यह स्वरुप ब्रह्म्चारिनी नाम से लोक प्रसिद्ध हुआ| इनका उद्भव ब्रह्माजी के कमन्डल से माना जाता है|ब्रह्माजी सरिश्टी के रचईता है|ब्रह्मचारिनी उनकी शक्ति है|जब मानस पुत्रो से सरिश्टी का विस्तार नही हो सका तो ब्रह्माजी का इसी शक्ति ने विस्तार किया | इसी कारण स्त्री को सरिश्टी का कारक माना गया |
ब्राह्मचारिनी देवी माँ ज्ञान ,वैराग्या और ध्यान की अधिठास्त्री है | इनके एक हाथ मे कमंडल और दूसरे हाथ मे रुद्राक्ष की माला है |करमाला,स्फटिक और ध्यान योग्य नवरात्र की दूसरी अधिश्ठापन शक्ति है |
माता ब्राह्मचारिनी का उपासना मंत्र :
या देवी सर्वभुतेषू शृश्टी रुपेण संस्थिता नमस्तस्यै नम्स्तस्यै नम्सतस्यै नमो नम:|
3.तृतीय माता चन्द्रघन्टा
शरदीय नवरात्र मे माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माता चन्द्रघन्टा की पूजा-अर्चना होती है |माँ चन्द्रघन्टा के सिर पर चंद्र और हस्त मे घंटा है |आह्वान ,संकल्प और नाद के रुप मे आराध्य यह देवी सरस्वती का रूप है |देवासुर सन्ग्राम मे देवी ने घंटे की नाद से अनेकानेक असुरो का दमन किया |ऐसा शोर और नाद हुआ की असुर काल के ग्रास बन गऐ|चन्द्रघन्टा देवी इसी नाद की आराध्या शक्ति है |चंद्रमा शांति का प्रतिक है और घंटा नाद का |माँ चंद्रघंटा नाद के साथ शांति का संदेश देती है |देवी की आराधना मे नाद पर विशेस ध्यान दिया गया है |वादन और गायन दोनो ही नाद के प्रतीक है |
इनकी आराधना के लिये सिद्धकुंजिका स्त्रोत्रम का पाठ मंगल फलदाई है|
4.चतुर्थ माता कुष्मामान्डा
नवरात्रो मे माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कुश्मान्डा की पूजा-अर्चना की जाति है | ईशत हास्य से ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी भगवती कुष्मामान्डा नाम से लोक प्रसिद्ध हुई |इनकी कांति और आभा सूर्य के समान है |कुष्मामान्डा देवी ने ही sristi का विस्तार किया | इनका यह स्वरुप अन्नपूर्णा का है |प्रकृती का दोहन और लोगो को भूख-प्यास से व्याकुल देखकर माँ ने शाकुंभरी का रूप धरा |शाक से धरती को पल्लवित किया और शताक्षी बनकर असुरो का सन्हार किया |कुष्मामान्डा देवी की आराधना के बिना जप और ध्यान संपूर्ण नही होते |नवरात्र के तीसरे दिन shaak-सब्जी और अन्न का दान फलदाई है |माता के इस रूप मे तृप्ति और तुष्टि दोनो है |
माँ का आराधना मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषू तुष्टि रुपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: |
5.पंचम स्कन्धमाता
देवी स्कन्धमाता कार्तिकेय और गणेश जी की माता है |गणेश जी मानसपुत्र है और कार्तिकेय जी गर्भ से उत्तपन्न हुये|तारकासुर का बध करने के लिये देवी पार्वती और शंकर जी ने विवाह किया |उनसे कार्तिकेय उत्तपन्न हुये और तारकासुर का अंत हुआ |स्कंद कुमार की माँ होने के कारण ही पार्वती स्कन्दमाता कहि गयी|कार्तिकेय को ही स्कन्द कुमार भी कहा जाता है |भगवान शंकर और पार्वती के मान्गलिक मिलन को सनातन संस्कृति मे परिणय परंपरा का आरंभ माना गया |नारी शक्ति इसी का ध्योतक है |आदि शक्ति माँ जगदंबा ने अपने इस चरित्र के माध्यम से पुत्र की व्याख्या की hai|पुत्र वह जो आग्याकारी हो |गणेश जी उनके मानसपुत्र थे,लेकिन आग्याकारी होने के कारण वह देवताओ मे अग्रनी रहे|
माँ का आराधना मंत्र :
या देवी सर्वभूतेषू मात्री रुपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:|
6.षष्ठम माता कात्यायनी
एक बार कात्यायन ऋषि ने तप करके देवी से वरदान माँगाकि आप मेरे कुल मे पुत्री के रुप मे जन्म ले|देवी को अजन्मा माना गया है |कात्यायन ऋषि की प्रसन्न्ता के लिये देवी ने अजन्मा स्वरुप त्याग कर ऋषि कुल मे जन्म लिया |इसी कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा|सामान्यत: पुत्री का गोत्रा पिता से अधिक ,पति के गोत्र से चलता है ,लेकिन यहा तो देवी सदा -सर्वदा के लिये पिता के गोत्र से जुड़ गई|नवरात्र के छठे दिन साधक माँ के इसी रुप की पूजा-अर्चना करते है |इस रात्री जागरण और जप करने से साधक को सहज ही माता कात्यायनी की कृपा का लाभ मिलता है |
माँ का आराधना मंत्र :
या देवी सर्वभूतेषू स्मृती रुपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: |
7.सप्तम माता कालरात्री
माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्री के नाम से जानी जाती है |दुर्गापूजा के सातवे दिन माँ कालरात्री की उपासना का विधान है |इस दिन साधक का मन 'सहस्त्रार' चक्र मे स्थित रहता है |इसके लिये ब्रह्मान्ड़ की समस्त सिद्धियो का द्वार खुलने लगते है |माँ कालरात्री का स्वरुप देखने मे अत्यन्त भयानक है,लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली है |इसी कारण इनका नाम ' शुभंकारी ' भी है|अत: इनसे भक्तो को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवस्यकता नही है |
माँ कालरात्री दुष्टो का विनाश करने वाली है |दानव,दैत्य,राक्षस भूत ,प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते है |ये ग्रह बाधाओ को भी दुर रखने वाली है|इनके उपासको को अग्नि-भय ,जल-भय ,जन्तू-भय ,शत्रु-भय ,रात्री-भय आदि कभी नही होते |इनकी कृपा से वह सर्वथा भय मुक्त हो जाते है |
8.अष्टम माता महागौरी
सौभाग्य ,धन-सम्पदा ,सौंदर्य और नारी सुलभ गुणो की अधिष्ठात्री देवी महागौरी है|नवरात्र व्रत के आठवे दिन साधक देवी के इसी रूप की पूजा करते है |अठारह गुणो की प्रतीक महागौरी अष्टाँग योग की अधिठाष्त्री भी है|वह धन-धान्य ,गृहस्थी,सुख और शांति प्रदात्री है|महागौरी इसी का प्रतीक है|भगवान शिव ने काली जी पर गंगाजल छिणका तो वह महागौरी हो गई|महागौरी श्रीष्टि का आधार है| महागौरी ही अक्षत सुहाग की प्रतीक देवी है|देवी के इस रूप की पूजा-अर्चना विवाहिता महिला को अखन्ड सौभाग्य का फल प्रदान करती है|
माँ की पूजा का श्लोक :
सर्वमन्गल मान्गल्य शिवे सर्वार्थसाधिके शरन्यत्र्यम्बके गौरी नारायनी नमोस्तुते |
9.नवम माता सिद्धिदात्री
नवरात्र के नवे दिन माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा-अर्चना की जाती है|मार्कन्डेय पुराण के अनुसार अनिमा ,महिमा ,
गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्रकाम्य,ईशित्व और वशित्व ये आठ प्रकार की सिद्धिया है |जिस साधक ने इनको प्राप्त कर लिया वह सुख-समृद्धि का प्रतीक हो गया | अर्थ पाना कठिन नही है ,अर्थ को सिद्ध करना बड़ा अर्थ रखता है|यह महालक्ष्मी जी का हाइ स्वरुप है|इनकी आराधना के साथ ही नवरात्र व्रत का पारायण होता है|सिद्धिदात्री देवी पूजन के साथ कन्या भोग और यज्ञ का विशेश फल मिलता है|
माँ सिद्धिदात्री जी का आराधना मंत्र :
या देवी सर्वभुतेषू लक्ष्मी रुपेण संस्थिता ,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: |
(जय माता दी)